मुस्लिम और यादव बहुल बदायूं लोकसभा सीट पर चुनाव के दौरान सीएए के असर से मुस्लिम राजनीति के दिग्गज इनकार कर रहे हैं। चार लाख से अधिक मुस्लिम मतों वाले लोकसभा क्षेत्र में एहतियाती सतर्कता बरती जा रही है।
मंगलवार को सियासी मिजाज परखने के दौरान स्थानीय मुस्लिम नेताओं की बातचीत में सीएए भी चर्चा का एक मुद्दा रहा। जब उन्हें बताया गया कि मौजूदा लोगों की नागरिकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, तो मुस्लिम आमतौर पर संतुष्टि जाहिर कर रहे हैं और चुनावी असर से भी मना कर रहे हैं।
यादव-मुस्लिम गठजोड़ का प्रभाव:
बदायूं लोकसभा क्षेत्र की सियासत पर यादव-मुस्लिम वोटों का असर रहता है। यह गठजोड़ चुनावी सियासी तस्वीर बदलने में सक्षम रहा है। आजादी से अब तक छह बार मुस्लिम वर्ग के नेता इस क्षेत्र से सांसद रहे हैं। पांच बार सलीम इकबाल शेरवानी और एक बार मोहम्मद असरार अहमद को सांसद चुना गया।
बड़े नेताओं की राय:
- आबिद रजा, पूर्व विधायक: "मेरी नजर में सीएए का चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि इससे देश में रहने वालों की नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। इसलिए किसी को दिक्कत नहीं होना चाहिए। अगर कोई इसे लेकर गलत बातें उडा रहा है तो उस पर कार्रवाई हो।"
- डॉ. यासीन उस्मानी, ऑल मुसिलम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव: "यह सिर्फ राजनीतिक स्टंट है। इसीलिए चुनाव से पहले सीएए पर कानून लाया गया है। यह सबने समझ लिया। कोई विरोध भी नहीं करेगा। मैं तो यही कहूंगा कि लोग ऐसे मसलों में नहीं पड़ना चाहते जिनका कोई औचित्य नहीं है। लोगों की समझदारी राजनीतिक स्टंट की हवा निकाल देगी।"
निष्कर्ष:
सीएए का बदायूं लोकसभा सीट पर चुनावी असर होगा या नहीं, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। मुस्लिम नेता इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। चुनाव नजदीक आने पर यह मुद्दा कितना गरमाएगा, यह देखना बाकी है।