FARMER PROTEST: किसानों की मोदी सरकार से 7 मांगे क्या चुनाव जीतने के लिए बीजेपी करेगी इन मांगों को पूरा, देखें पूरी खबर

 क्यों कर रहे हैं FARMER PROTEST

https://www.sudarshantimes.com/2024/02/farmer-protest-delhi.html


किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने सुदर्शन टाइम्स से कहा कि पिछले आंदोलन के समय केंद्र सरकार ने तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने के वादा किया था, जिसे निभा दिया गया। लेकिन उसके साथ-साथ एमएसपी पर कमेटी गठित कर शीघ्र निर्णय लेने का वादा किया था। आंदोलन को समाप्त हुए दो वर्ष का समय हो गया है, लेकिन सरकार ने अपना यह वादा नहीं निभाया है... 

किसानों ने एक बार फिर केंद्र सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। 12 सूत्रीय मांगों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 26 किसान संगठन 12 फरवरी को चंडीगढ़ में एकत्र होंगे। केंद्रीय मंत्रियों पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और नित्यानंद राय से मांगों को लेकर बातचीत होगी। कोई निष्कर्ष न निकलने पर 13 फरवरी को किसान दिल्ली की ओर कूच करेंगे। 16 फरवरी को भारत बंद का एलान किया गया है। मांगें पूरी न होने पर एक बार फिर दिल्ली सहित देश के अलग-अलग स्थानों पर राष्ट्रीय राजमार्गों को बंद करने की तैयारी है। 

लेकिन किसानों की मांगें क्या हैं, और क्या उन्हें पूरा किया जा सकता है? मामले से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने सुदर्शन टाइम्स को बताया है कि किसानों की मांगों में कई मांगें ऐसी हैं, जिन्हें तत्काल पूरा किया जाना चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य और भूमि अधिग्रहण पर किसानों की शंकाओं का तत्काल समाधान होना चाहिए। लेकिन उनकी कई मांगें ऐसी हैं, जिसे पूरा करना लगभग असंभव है। माना जा रहा है कि मांगों में इन मुद्दों को शामिल कर वार्ता को हर हाल में विफल होने का रास्ता तैयार कर दिया गया है। लखीमपुर हिंसा में कुछ बड़े नेताओं को जबरदस्ती दोषी ठहराने की मांग ऐसी ही है, जिसे केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकती। ऐसे में वार्ता असफल होगी और केंद्र-किसानों दोनों की समस्या बढ़ेगी। ऐसे में इस मामले का क्या हल निकल सकता है? लेकिन यह भी तय है कि यदि किसान और केंद्र सरकार सही सोच के साथ एक बातचीत की टेबल पर बैठें, तो हर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। इससे किसानों-श्रमिकों को मजबूती दी जा सकती है तो देश की कई समस्याओं का समाधान भी निकल सकता है।किसानों की मांग और उन्हें पूरा करने का रास्ता-

आखिर क्या है किसानो की 7 मांगे 

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1- किसानों की सबसे बड़ी मांग है कि उन्हें सभी फसलों पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिया जाए। केंद्र सरकार का दावा है कि वह प्रमुख फसलों को उत्पादन मूल्य पर 50 फीसदी का लाभ देते हुए फसलों की खरीद कर रही है, लेकिन किसान भूमि का किराया शामिल करते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात कर रहे हैं।

2- किसानों का कहना है कि यदि उद्योगपतियों का लाखों करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया जा सकता है, तो किसानों का क्यों नहीं। लेकिन सरकार का पक्ष है कि पूरे देश के किसानों का कुल कर्ज बहुत ज्यादा है और पूरे कर्ज की माफी संभव नहीं है, इससे गलत परंपरा भी पैदा होगी। किसान कर्ज लेकर नहीं चुकाएंगे तो देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में फंस जाएगी। बीच का रास्ता अपनाकर इस मामले का हल निकाला जा सकता है। किसानों के कर्ज का कुछ हिस्सा माफ किया जा सकता है और कुछ को आसान किस्तों में वापस करने का विकल्प सुझाया जा सकता है।

3- किसान भूमि अधिग्रहण कानून बदलकर भूमि लेने के लिए किसानों की सहमति अनिवार्य करने और बाजार मूल्य से चार गुना मूल्य निश्चित करने की मांग कर रहे हैं। इस मामले में दोनों पक्षों में सहमति बन सकती है। एक क्षेत्र के 80-90 फीसदी किसानों के सहमत होने पर सभी किसानों की भूमि बाजार दर से अधिग्रहित करने की राह बनाई जा सकती है।

4- किसान लखीमपुर कांड में कथित तौर पर शामिल कुछ नेताओं के गिरफ्तारी और उन्हें सजा दिए जाने की मांग कर रहे हैं। इसमें कुछ ऐसे लोगों के नाम भी हैं, जो न तो घटनास्थल पर थे और न ही उनकी कोई संलिप्तता सामने आई है। लेकिन किसानों को केवल जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाने के आश्वासन पर सहमत किया जा सकता है।

5- किसान खेती को मनरेगा से जोड़ें, उन्हें न्यूनतम 700 रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी देने और वर्ष में 200 दिन न्यूनतम रोजगार देने की मांग कर रहे हैं। कृषि विशेषज्ञों का क

हना है कि इस तरह की मांग अव्यावहारिक है और मनरेगा में भी पूरे 100 दिन का काम नहीं मांगा जा रहा है, ऐसे में 200 दिन निश्चित करने की बात भी अव्यावहारिक है। राज्यों को भूमिका बढ़ाकर किसानों को आर्थिक लाभ और केंद्र पर अतिरिक्त भार देने से बचने की राह निकाली जा सकती है।

6- विश्व व्यापार संगठन के समझौतों से पीछे हटना किसानों की बड़ी मांग है, लेकिन विश्व व्यापार व्यवस्था से हटना अब केंद्र के लिए भी संभव नहीं है। केंद्र सरकार हर स्थिति को समझते हुए कोई समझौता देशहित में करती है, लेकिन सभी पक्षों पर विचार किए बिना किसानों की यह मांग अव्यावहारिक मानी जा रही है।

7- किसानों-खेतिहर मजदूरों को पेंशन देना किसानों की एक प्रमुख मांग है, लेकिन पेंशन की राशि पर बातचीत कर एक उचित दर पर सहमति बन सकती है। यदि किसानों-मजदूरों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण सुविधायुक्त इलाज, उनके बच्चों को शिक्षा देकर उनकी ज्यादा बड़ी समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। इससे किसानों के साथ-साथ देश की कई बड़ी समस्याओं का भी समाधान किया जा सकता है।
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